ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष एक महत्वपूर्ण विषय है। यह माना जाता है कि पूर्वजों के अपूर्ण कर्म या आत्मा की शांति न मिलने के कारण पितृ दोष उत्पन्न होता है। इस दोष का व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। आइए जानते हैं पितृ दोष के बारे में विस्तार से।
पितृ दोष का अर्थ है पितरों का ऋण न चुका पाना। हमारे पूर्वजों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण योगदान होता है। उनके आशीर्वाद से ही हम जीवन में आगे बढ़ पाते हैं। लेकिन यदि किसी कारणवश पितरों की आत्मा को शांति नहीं मिलती है तो यह दोष व्यक्ति को प्रभावित करने लगता है।
पितृ दोष कई कारणों से बन सकता है, जैसे:
सूर्य पिता और पूर्वजों का कारक ग्रह है।
यदि सूर्य राहु, केतु, शनि जैसे पाप ग्रहों के साथ हो, या उनसे दृष्ट हो, तो पितृ दोष बनता है।
सूर्य का नीच राशि में होना या अष्टम भाव में होना भी दोष का कारण हो सकता है।
सूर्य + राहु = ग्रहण योग → पितृ दोष
सूर्य + शनि = पितृ दोष
पंचम या अष्टम भाव में राहु का होना भी पितृ दोष बनाता है।
पितृ दोष के कई लक्षण हो सकते हैं, जैसे:
पितृ दोष के निवारण के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं, जैसे:
पितृ दोष एक गंभीर समस्या हो सकती है, लेकिन इसे दूर किया जा सकता है। नियमित धार्मिक अनुष्ठान, पितरों के प्रति सम्मान और दान-पुण्य से पितृ दोष का प्रभाव कम किया जा सकता है। यदि आप पितृ दोष से परेशान हैं तो एक योग्य ज्योतिषी से संपर्क करें।
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