कुंडली में ग्रह कहाँ बैठे हैं यह आधी कहानी है; वे किस पर नज़र रख रहे हैं और किसके साथ बैठे हैं—यह पूरी कहानी बताता है। दृष्टि से किसी भाव/ग्रह पर प्रभाव पहुँचता है, जबकि युति में दो या अधिक ग्रह मिलकर एक संयुक्त परिणाम बनाते हैं। Health Wealth Vaastu की Jyotish Ratna श्रृंखला में आज इन्हीं दो स्तंभों को साफ़, व्यावहारिक तरीके से समझते हैं।
सामान्य 7वीं दृष्टि: हर ग्रह अपने सामने वाले भाव पर देखता है। उदाहरण: 1st में बैठा ग्रह 7th पर प्रभाव देगा—रिश्ते, साझेदारी, पब्लिक-इमेज पर असर।
विशेष दृष्टियाँ (Vedic Basics):
मंगल: 4th और 8th पर विशेष दृष्टि (साथ में 7th तो है ही)। घर/सुरक्षा/भावनाएँ (4th) और परिवर्तन/गुप्त विषय (8th) पर एक्शन-टोन आता है।
गुरु: 5th और 9th पर विशेष दृष्टि—ज्ञान, मेंटर्स, भाग्य, सीख-सम्बंधी अवसरों में विस्तार का संकेत।
शनि: 3rd और 10th पर विशेष दृष्टि—प्रयास, अनुशासन, करियर-डिलिवरी पर दबाव/स्थिरता/जिम्मेदारी लाता है।
दृष्टि की गुणवत्ता किस पर निर्भर? ग्रह की स्थिति (उच्च/नीच/स्वक्षेत्र), गति (वक्री/मार्गी), दग्ध/अस्त, और उसे मिलने वाली शुभ-पाप दृष्टि पर। शक्तिशाली ग्रह की दृष्टि दूर तक असर देती है, कमजोर ग्रह संकेत देता है पर डिलीवरी सीमित रहती है।
भाव-विशेष दृष्टि: जिस भाव पर दृष्टि पड़े, उस जीवन-क्षेत्र को ग्रह की प्रकृति रंग देती है—मंगल की दृष्टि से निर्णय-गति, शुक्र की दृष्टि से सौंदर्य/रिश्तों का टोन, शनि की दृष्टि से समय-सीमा और नियम आदि।
युति का अर्थ: दो या अधिक ग्रह एक ही भाव/राशि क्षेत्र में हों तो उनकी ऊर्जा मिलकर काम करती है।
कौन हावी रहता है? परिस्थिति पर निर्भर—जो ग्रह अधिक बलवान हो (स्थिति/दिग्निटी/वक्री/डिग्री-क्लोजनेस), उसका रंग गाढ़ा दिखता है।
मित्र-शत्रु का समीकरण: मित्र ग्रह साथ हों तो समन्वय बढ़ता है; शत्रु साथ हों तो घर्षण से सीख/संयम की परीक्षा होती है।
कंबशन/दग्ध: सूर्य के बहुत समीप ग्रह दग्ध होकर अपने सॉफ्ट गुण खो सकता है—युति का परिणाम बदल जाता है।
“योग” बनाम “ओवरलोड”: हर युति योग नहीं बनाती। एक ही भाव में बहुत सारे ग्रह हों तो ओवर-फोकस होता है—जीवन उसी क्षेत्र में ऊर्जा खपा देता है। संतुलन ज़रूरी है।
Step 1: भाव चुनें—जिस विषय पर प्रश्न है (जैसे करियर = 10th, विवाह = 7th)।
Step 2: उस भाव पर दृष्टि देखें—किस-किस ग्रह की नज़र है? उसकी प्रकृति क्या है?
Step 3: भाव-स्वामी की हालत—स्वामी मजबूत है या कमजोर? कहीं युति/दृष्टि से अच्छा/बुरा असर तो नहीं?
Step 4: युति की डिग्री-नज़दीकी—कौन मुख्य चालक है? मित्र/शत्रु संबंध? दग्ध/वक्री?
Step 5: समय—चल रही दशा/अंतरदशा और गोचर से निष्कर्ष की टाइमिंग तय करें।
Step 6: निष्कर्ष = संकेत + व्यवहार—सिर्फ़ परिणाम मत बोलिए, क्या करना है भी लिखिए (सुधार, रूटीन, संचार-स्टाइल, सीख)।
उदाहरण 1: करियर में ठहराव
10th भाव पर शनि की विशेष (10th) दृष्टि दिख रही है, और 10th-स्वामी शनि के साथ युति में कमजोर है। संकेत: देरी, कठोर KPIs, स्ट्रक्चर की कमी। उपाय-दिशा:
काम को सप्ताहिक माइलस्टोन में बाँटें;
वरिष्ठ से लिखित अपेक्षाएँ लें;
रोज़ 30–40 मिनट गहरा काम (Deep Work) शेड्यूल।
शनि संतुलित होते ही ठहराव घटता है और स्थायित्व आता है।
उदाहरण 2: रिश्तों में तनाव
7th भाव पर मंगल की 8th दृष्टि और भीतर बुध-शुक्र युति; मंगल मजबूत, शुक्र मध्यम। संकेत: संचार में तिक्तता, लेकिन सुधार की गुंजाइश। दिशा:
सप्ताह में एक नो-फोन कन्फ़रसेशन;
“मैं” की जगह “हम” भाषा;
छोटे-छोटे जॉइंट-गोल्स (3-4 सप्ताह में पूरा होने वाले)।
मंगल की ऊर्जा को लक्ष्य में लगाएँ, टकराव में नहीं।
केवल एक नियम से निष्कर्ष: “मंगल की दृष्टि है = झगड़ा”—ज़रूरी नहीं। भाव-स्वामी, समय और बाकी दृष्टियाँ भी देखें।
युति को हमेशा योग समझना: हर युति फलदायी नहीं; ओवर-लोड से असंतुलन भी बनता है।
समय की अनदेखी: दशा/गोचर सही न हो तो अच्छे योग भी रुके रहते हैं।
उपाय = शॉर्टकट: पहले व्यवहार/रूटीन/सीमाएँ; फिर ही मंत्र/दान/रत्न—यही टिकाऊ सुधार है।
प्र. क्या हर ग्रह 7वीं दृष्टि देता है?
उ. हाँ, सामान्यतः हर ग्रह सामने वाले भाव पर 7वीं दृष्टि देता है—इसके अलावा मंगल, गुरु और शनि की विशेष दृष्टियाँ भी मानी जाती हैं।
प्र. युति में कौन-सा ग्रह ज़्यादा असर देता है?
उ. जो अधिक बलवान हो—दिग्निटी, डिग्री-क्लोजनेस, वक्री/दग्ध स्थिति और मित्र-शत्रु संबंध देखकर तय करें।
प्र. क्या अच्छी युति हमेशा अच्छा फल देगी?
उ. नहीं। गलत समय, कमजोर भाव-स्वामी, या कठोर दृष्टियों के कारण परिणाम बदल सकता है।
प्र. शुरुआत कहाँ से करूँ—दृष्टि या युति?
उ. पहले भाव और उसका स्वामी देखें, फिर उस पर पड़ रही दृष्टियाँ, उसके बाद युति। अंत में दशा/गोचर से टाइमिंग तय करें।
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